प्राचीन इतिहास : प्रमुख एवं लघु शिलालेखों तथा स्तंभलेखों की सूची


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भारतीय इतिहास के सबसे शक्तिशाली सम्राटों के संरक्षण में बौद्ध धर्म का प्रसार किस प्रकार हुआ इसका पहला प्रमाण शिलालेखों से प्राप्त हुआ था| इन शिलालेखों की व्याख्या सर्वप्रथम ब्रिटिश पुरातत्वविद् और इतिहासकार जेम्स प्रिंसेप द्वारा की गई थी| इन शिलालेखों में मूल रूप से राज्य को चलाने में सहायक व्यावहारिक निर्देश जैसे- सिंचाई प्रणालियों की योजना, सम्राटों के शांतिपूर्ण नैतिक व्यवहार की व्याख्या की गई थी|



प्रमुख शिलालेख I

इस शिलालेख में राजा द्वारा विशेष रूप से उत्सव समारोहों के दौरान पशु वध को निषिद्ध घोषित करने का वर्णन है|

प्रमुख शिलालेख II

इस शिलालेख में दक्षिण भारत के राज्यों जैसे चोल, पांड्य, सतपुड़ा और केरलपुत्र का वर्णन है| इसके अलावा इस शिलालेख में मनुष्य और जानवरों के देखभाल से संबंधित आदेशों का वर्णन है|

प्रमुख शिलालेख III

इस शिलालेख का निर्माण अशोक के राज्याभिषेक के 12 साल बाद किया गया था| इस शिलालेख में कहा गया है कि “युक्त” (अधीनस्थ अधिकारी), “प्रादेशिक” (जिला प्रमुखों) और “राजुक” (ग्रामीण अधिकारी) प्रत्येक पांच साल के बाद राज्य के सभी क्षेत्रों में जाएंगे और अशोक के धम्म नीति का प्रचार करेंगे| इसके अलावा इस शिलालेख में ब्राह्मणों के प्रति उदारता प्रकट करने हेतु व्यावहारिक निर्देश दिए गए हैं|

प्रमुख शिलालेख IV

इस शिलालेख में कहा गया है कि “भेरीघोष” (युद्ध के नगाड़ो की आवाज) के बजाय “धम्मघोष” (शांति की आवाज) मानव जाति के लिए आदर्श है| इसके अलावा इस शिलालेख में समाज पर धम्म के प्रभाव का भी वर्णन किया गया है|

प्रमुख शिलालेख V

इस शिलालेख में दासों से संबंधित नीतियों के बारे में चिंता व्यक्त की गई है और “धम्म महामात्र” की नियुक्ति का उल्लेख है| साथ ही इस शिलालेख में अशोक ने उल्लेखित किया है कि “प्रत्येक मानव मेरा संतान है”|

प्रमुख शिलालेख VI

इस शिलालेख में राजा द्वारा लगातार लोगों की स्थिति के बारे में सूचना प्राप्त करने की इच्छा का वर्णन है। दूसरे शब्दों में, इस शिलालेख में कल्याण के उपायों के बारे में बात की गई है|

प्रमुख शिलालेख VII

इस शिलालेख में सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता रखने के लिए राजा के व्यावहारिक निर्देश का वर्णन किया गया है| साथ ही यह भी कहा गया है कि “अपने सम्प्रदाय को बढ़ावा के लिए, दूसरों सम्प्रदायों का अपमान करने से अपने ही सम्प्रदाय का नुकसान होता है|”

प्रमुख शिलालेख VIII

इस शिलालेख में अशोक की पहली धम्म यात्रा के रूप में “बोधगया” की यात्रा और “बोधिवृक्ष” का वर्णन किया गया है|

प्रमुख शिलालेख IX

इस शिलालेख में जन्म, बीमारी, शादी के बाद और यात्रा पर जाने से पहले आयोजित किए जाने वाले लोकप्रिय समारोहों की निंदा की गई है| साथ ही धम्म के अभ्यास पर बल दिया गया है|

प्रमुख शिलालेख X

इस शिलालेख में प्रसिद्धि और महिमामंडन की निंदा की गई है और धम्म नीति की खूबियों की पुष्टि की गई है|

प्रमुख शिलालेख XI

इस शिलालेख में “धम्म” की नीति के बारे में बताया गया है और हर व्यक्ति को अपने से बड़ों के प्रति सम्मान व्यक्त करने हेतु जोर दिया गया है| साथ ही जानवरों की हत्या से परहेज़ करने एवं दोस्तों के प्रति उदारता व्यक्त करने के लिए कहा गया है|

प्रमुख शिलालेख XII

इस शिलालेख में विभिन्न धार्मिक संप्रदायों को आपस में सहिष्णुता रखने हेतु दृढ़-संकल्पित और निदेशित किया गया है|

प्रमुख शिलालेख XIII

इस शिलालेख का सर्वोपरि महत्व यह है कि यह “अशोक के धम्म की नीति” को समझने में मदद करता है| इस शिलालेख में वर्णन किया गया है कि विजय का मार्ग “युद्ध के बजाय धम्म” है| यह शिलालेख पूरी तरह से “प्रथम शिलालेख” से शुरू हुई प्रक्रियाओं की तार्किक परिणति है|

प्रमुख शिलालेख XIV

यह शिलालेख देश के विभिन्न भागों में शिलालेखों के उत्कीर्णन का वर्णन करता है|

अन्य शिलालेख और अभिलेख

• शिलालेख I: इस शिलालेख में अशोक ने पूरी प्रजा को अपना पुत्र कहा है|

• शिलालेख II: इस शिलालेख में एक ही व्यक्ति के बारे में वर्णन किया गया है|

• रानी का शिलालेख: इस शिलालेख में अशोक की दूसरी रानी का वर्णन किया गया है|

• बारबरा गुहा अभिलेख: आजीविक संप्रदाय के “कंधार” को बारबरा की गुफा देने की चर्चा की गई है|

• द्विभाषीय शिलालेख: इस शिलालेख में अशोक की नीतियों पर संतुष्टि व्यक्त की गई है|

स्तंभलेख

अशोक के 7 स्तंभलेख टोपरा (दिल्ली), मेरठ, इलाहाबाद, रामपूरवा, लौरिया अरराज (चंपारण), लौरिया नन्दगढ़ (चंपारण) में पाया गया है। लघु स्तंभलेख सांची, सारनाथ, रूम्मिनदेई, कौशाम्बी और निगाली सागर में पाया गया है|

• स्तंभलेख I: इस स्तंभलेख में लोगों की सुरक्षा के संबंध में अशोक के सिद्धांतों का वर्णन है|

• स्तंभलेख II: इस स्तंभलेख में “धम्म” को पापों की कम करनेवाला, सदाचार को बढ़ाने वाला एवं करूणा, उदारता, सच्चाई और पवित्रता को बढ़ानेवाला के रूप में परिभाषित किया गया है|

• स्तंभलेख III: इस स्तंभलेख में कठोरता, क्रूरता, क्रोध, अभिमान जैसे पापों को समाप्त करने पर बल दिया गया है|

• स्तंभलेख IV:  इस स्तंभलेख में “राजुक” के कार्यों का वर्णन किया गया है|

• स्तंभलेख V: इस स्तंभलेख में ऐसे जानवरों और पक्षियों की सूची है जिन्हें कुछ दिनों तक नहीं मारा जाना चाहिए| साथ ही ऐसे जानवरों की भी सूची दी गई है जिन्हें कभी भी नहीं मारना चाहिए| इस स्तंभलेख में अशोक द्वारा 25 कैदियों की रिहाई का भी वर्णन किया गया है|

• स्तंभलेख VI: इस स्तंभलेख में “धम्म” के सिद्धांतो का वर्णन किया गया है|

• स्तंभलेख VII: इस स्तंभलेख में अशोक द्वारा धम्म के सिद्धांतों से संबंधित किए गए कार्यों का वर्णन किया गया है| इस स्तंभलेख में कहा गया है कि सभी सम्प्रदायों की इच्छा “आत्म नियंत्रण” और “मन की पवित्रता” दोनों है|

अन्य स्तंभलेख

• रूम्मिनदेई स्तंभलेख: इस स्तंभलेख में अशोक की लुम्बिनी यात्रा और लुम्बिनी के लोगों को कर में दी गई छूट का वर्णन है|
• निगालीसागर स्तंभलेख: यह स्तंभलेख मूलतः “कपिलवस्तु” में स्थित था| इस स्तंभलेख में कहा गया है कि अशोक ने “कोनकमान बुद्ध” के स्तूप की ऊँचाई को बढ़ाकर दुगुना कर दिया था|